खेती की विधियाँ
इस फसल की क्षमता पूरी तरह दिखने के लिए ज़मीन अच्छी तरह
तैयार करना अनिवार्य है। 30-45 से.मी. की गहराई तक जुताई/छेनी कर, पाटा और रोटावेटर चला कर यह कार्य किया जा सकता है। ज़मीन की तैयारी की अंतिम
चरण से पहले मिट्टी में 25 टन/हे. की दर से अच्छी तरह सड़ी,
जैविक
कारकों से समृद्ध गोबर की खाद को मिलाना चाहिए। मिट्टी को अच्छी
भुरभुरी करने के बाद 80 से.मी. की ऊँची क्यारियाँ बनाई जाएँ और
क्यारियों के बीच का कूँड
40 से.मी.
का हो। चौड़ी क्यारी पद्धति से टपक सिंचाई,
फर्टिगेशन और पोलिथीन से पलवार (मल्चिंग) जैसी उन्नत तकनीकियों को
अपनाने में सुविधा
होगी। सामान्य पद्धति में,
संकर
किस्मों के लिए कूँड 105 से.मी. से 120 से.मी. की दूरी पर खोली
जाती है।
ट्राइकोडर्मा,
जो एक
उपयोगी प्रतिरोधी कवक है,
जिसको
गोबर की खाद में 1 कि.ग्रा./टन के
हिसाब से मिलाया जाना चाहिए और 15 दिनों तक उचित नमी के साथ बढ़ने
दिया जाता है। इसी प्रकार इसके साथ में एज़ोस्पिरल्लम/एज़ेटोबैक्टर
और पीएसबी भी मिलाने चाहिए। जैविक कारकों से संवर्धित इस गोबर की
खाद को बाकी बचे गोबर की खाद में मिलाकर खेत पूरी तरह तैयार करने
से एकदम पहले खेत में मिलाना चाहिए। इन जैविक कारकों को पौधों की
तैयारी के समय उगाने की सामग्री में 1 कि.ग्रा./टन सामग्री के
हिसाब से मिलाना चाहिए।
पौध की तैयारी और बीज का दर
नेट हाउस जैसी संरक्षित ढाँचे में पौध ट्रे में कोकोपीट का
उपयोग करते हुए पौध तैयार करना आजकल प्रचलित विधि है। इससे कम
विषाणु-बीमारियों वाले गुणवत्तायुक्त पौध सुनिश्चित होते हैं। कई
उद्यमी किसानों ने व्यापक रूप से सब्जियाँ उगाने वाले क्षेत्रों
में सब्जियों की पौधशाला-व्यवसाय शुरू किया है और किसान इस इकाई से
सीधे पौधे खरीद सकते हैं। प्रत्येक किसान भी इस उन्नत विधि से पौध
तैयार कर सकते हैं। किसानों को 40-जाली वाली नाइलोन के कपड़े से बने
जाली वाला पिंजरा,
भाप से रोगाणु-रहित बनाए गए
कोकोपीट और 98 छेद वाले पौध ट्रे खरीदने चाहिए। दस हज़ार पौधे तैयार
करने के लिए 7.5 मी. लंबा, 3.4
चौड़ा,
और 2.4
मी. ऊँचा जाली वाला पिंजरा बनाना चाहिए। पौध को ट्रे में रोपने से
पहले प्रणालीगत कीटनाशियों का छिड़काव किया जाना चाहिए। इसी प्रकार
मिट्टी से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए रोपाई के तुरंत बाद
पौधों को सीओसी जैसे कवकनाशियों में 3 ग्रा./ली. की दर से भिगोना
चाहिए। प्रोट्रे विधि में 120 से.मी. 45 से.मी.(18000 पौधे/हे.) की
दूरी पर एक हेक्टेयर में टमाटर लगाने के लिए लगभग 75 ग्रा. बीजों
की ज़रूरत होती है। ऊँची क्यारी पद्धति में एक हेक्टेयर के लिए संकर
किस्मों का बीज-दर 100-125 ग्रा. और खुले रूप से परागित किस्मों के
200-250 ग्रा. है। बुवाई के 20-25 दिन बाद पौध रोपाई के लिए तैयार
हो जाते हैं।
रोपाई की ऊँची क्यारी विधि में, 25 दिन
वाले दृढ़ और नाटे पौध की रोपाई पौध से पौध के बीच 45 से.मी. की
दूरी पर क्यारी के मध्य भाग में की जाती है। पौध के मर जाने को कम
करने के लिए रोपाई से एक सप्ताह तक नियंत्रित सिंचाई की जानी
चाहिए। रोपाई की सामान्य विधि में,
संकर
किस्मों के लिए 105-120 से.मी. के कूँड बनाई जाती है और कूँड में
30-45 से.मी. की दूरी पर पौध की रोपाई की जाती है।
टमाटर की खेती में टपक सिंचाई और फर्टिगेशन को अपनाने
से कई फ़ायदे होते हैं। पम्प सहित मुख्य नियंत्रण इकाई,
डिस्क फिल्टर,
उर्वरक इंजेक्ट करने
वाला उपकरण या टंकी या पम्प,
प्रेशर गेज और वायु छोडने वाले वाल्व की ज़रूरत है। 1.2
मी. की दूरी पर पीवीसी पाइप से इनलाइन ड्रिप लेटरल निकाला जाता है।
इन इनलाइन ड्रिप लेटरल में से पानी छोड़ने के 40 से.मी. जगह सहित और
3-4 ली. प्रति घण्टे की दर से पानी छोड़ने की क्षमता वालों का चयन
किया जाता है। फसल की अवस्था (फसल-कारक) और दैनिक वाष्पण के आधार
पर रोज़ टपक सिंचाई की जानी चाहिए। रोपाई के 50 से 60 दिन बाद
फसल-कारक स्थापना के दौरान 0.3 से वृद्धि की चरम अवस्था और पुष्पण
की अवधि तक 0.80-0.85 के बीच होती है। टपक सिंचाई की इकाई की
स्थापना से पहले पानी की गुणवत्ता,
जैसे ईसी की जाँच करनी चाहिए।
अंत:सस्य क्रिया,
टेक देना और खरपतवार निकालना
बाँस,
कसूरिना
या यूकैलिप्टस की लकड़ियों और जीआई तार का इस्तेमाल करते हुए टमाटर
के पौधों को टेक देने की व्यवस्था की जानी चाहिए। टेक देने से
बेहतर पौध-संरक्षण और आसान तुड़ाई संभव होती है और आखिरकार पैदावार
एवं गुणवत्ता भी बढ़ती है। रोपाई की मेंड़ व कूँड़ पद्धति में,
रोपाई के 4 सप्ताह बाद मिट्टी
चढ़ाई जाती है और पौधों के चारों ओर नत्रजन उर्वरक का प्रयोग किया
जाता है। रोपाई के 45 दिन तक खेत को खरपतवार-रहित किया जाना चाहिए।
30 माइक्रोन मोटे और चाँदी-काले सतह के पोलीथीन पलवार
का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 80 से.मी. चौड़ी क्यारियों को 90 मी.
चौड़ी पोलीथीन पलवार फिल्म को कसकर खींचकर ढकना चाहिए और फिल्म के
किनारों के ऊपर मिट्टी डालकर दबाना चाहिए।
पत्तों के माध्यम से पोषकतत्वों का प्रयोग
रोपाई के 45 दिनों से शुरू करते हुए और पोषक तत्व की
कमी लक्षण के आधार पर फसल को 10-15 दिनों में 2-3 बार सूक्ष्म
पोषकतत्व मिश्रण (3-5 ग्रा./ली.) से छिड़काव किया जाना चाहिए। अगर
कैल्शियम की कमी की गुंजाइश होती है तो पत्ती-पोषण के रूप में
कीलेटेड कैल्शियम का प्रयोग किया जाना चाहिए। फल-विकास के दौरान
सूक्ष्म पोषक तत्व या पोटाशियम सल्फेट या पोटाशियम नाइट्रेट
(5ग्रा./ली.) के साथ में 19-19-19 से पत्ती का पोषण करने से फल का
आकार,
रंग और गुणवत्ता
बढ़ेगी।