अच्छी जल-निकास वाली उपजाऊ दोम्मट मिट्टी, जिसमें पर्याप्त वायु-संचार हो, टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त है। मिट्टी के पीएच का अनुकूल स्तर 6.0 से 7.0 तक है। जल-जमाव के कारण जीवाणु झुलसा बीमारियाँ लगने की गुंजाइश बढ़ेगी। अनाज की फसल के साथ फसल-चक्र अपनाना मृदा से आने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए अनिवार्य है। यह गर्म मौसम की फसल है और फसल की अवधि 90-150 दिन होती है। सही तरीके से पकने, रंग, गुणवत्ता और अधिक पैदावार के लिए गर्म धूप वाला मौसम उत्तम है। इसकी वृद्धि के लिए दिन में 28° से. और रात में 18° से. चाहिए। अधिक बारिश होने से पर्ण और फल-सड़न की बीमारियाँ लगने की गुंजाइश ज्यादा होती है। तापमान के अधिक होने से बीमारी फैलाने वाले कीटों की संख्या बढ़ेगी, जिसकी वजह से टोस्पो और टीएलसीवी जैसी विषाणु बीमारियाँ ज्यादा होगी। देश के दक्षिणी भागों में, जहाँ की जलवायु नरम होती है, टमाटर की खेती साल भर की जाती है। फिर भी, अक्तूबर-नवंबर में रोपाई करने से सबसे ज्यादा पैदावार और गुणवत्ता-युक्त फल मिलते हैं।
संकर किस्म के लिए 180:120:150 कि.ग्रा. नत्रजन:फास्फोरस:पोटाश की सिफारिश की जाती है। उर्वरकों की लागत बचाने के लिए फर्टिगेशन तालिका में, फास्फोरस की संपूर्ण मात्रा का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में मिट्टी के माध्यम से किया जा सकता है। नत्रजन का प्रयोग यूरिया से इंजेक्शन के माध्यम से किया जा सकता है और पोटाश का प्रयोग पानी में घुलनशील पोटाशियम नाइट्रेट के रूप में किया जा सकता है। उर्वरकों का प्रयोग इंजेक्शन के माध्यम से करने के लिए उर्वरक-टंकी या उर्वरक-इंजेक्टर का इस्तेमाल किया जा सकता है। रोपाई के 10 दिन बाद से फर्टिगेशन शुरू किया जा सकता है और रोज़ या सप्ताह में दो बार के हिसाब से किया जा सकता है। अंतिम तुड़ाई के तीन सप्ताह पहले फर्टिगेशन बंद किया जा सकता है। सामान्य रूप से, संकर किस्मों के लिए मिट्टी में उर्वरकों का प्रयोग ऐसे करना चाहिए कि 1/3 नत्रजन, फास्फोरस की संपूर्ण मात्रा और 1/3 पोटाश का प्रयोग मूल खुराक के रूप में रोपाई से पहले करना चाहिए। रोपाई से 4 सप्ताह होने पर 1/3 नत्रजन और 1/3 पोटाश का प्रयोग पौधे के चारों ओर करना चाहिए और शेष बचे 1/3 नत्रजन और 1/3 पोटाश का प्रयोग रोपाई के 8-9 माह के बाद करना चाहिए। खुले रूप से परागित किस्मों के लिए उर्वरक की अनुशंसित मात्रा 120:100:60 कि.ग्रा. नत्रजन:फास्फोरस:पोटाश/हे. है। नत्रजन का आधा भाग मूल खुराक के रूप में दिया जाना चाहिए और शेष भाग का प्रयोग रोपाई के 4 सप्ताह बाद दिया जाना चाहिए। फास्फोरस की पूरी मात्रा का प्रयोग रोपाई से पहले मूल खुराक के रूप में करना चाहिए।