टमाटर को बीमारियाँ जीवाणु, कवक और विषाणुओं से होती हैं। ये मिट्टी, पानी, हवा और संक्रमित सामग्रियों से फैलती हैं।
रोपाई से पहले एक बार और रोपाई के दो सप्ताह बाद एक बार फिर से पौध को केप्टाफ (2.0 ग्रा./ली.) से या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3.0 ग्रा./ली.) या कॉपर हाइड्रॉक्साइड (2.0 ग्रा./ली.) से भिगोए।
पछेती अंगमारी के लिए सुझाए गए रसायनों का छिड़काव करें।
इस बीमारी की शुरूआत में हेक्साकोनाज़ोल (1.0 मि.ली./ली.) या डायनोकेप (1 मि.ली./ली.) या गलने वाला सल्फर (2.5 ग्रा./ली.) या कार्बेन्डाज़िम (1 ग्रा./ली.) या ट्रायडिमेफोन 25 डब्ल्युपी (0.4 ग्रा./ली.) या डायफेनकोनाज़ोल (0.5 मि.ली./ली.) या क्रेसोक्सिम मीथाइल 44.3% एससी (2.0 मि.ली./ली.) या प्रोपीकोनाज़ोल 25 ईसी (1.0 मि.ली./ली.) का प्रयोग करें।
अगर बीमारी दिख जाए, तो जड़ों को ट्राइकोडर्मा हर्जियानम (20 ग्रा./ली. घोल) या कार्बेन्डाज़िम (1.0 ग्रा./ली.) से भिगोएँ।
जीवाणु-झुलसा की प्रतिरोधी किस्मों को उगाएँ ।
टमाटर के पत्ती-मोड़क विषाणु की प्रतिरोधी/सहनशील प्रजातियों को उगाएँ। सफ़ेद मक्खी के प्रबंधन की विधियों को अपनाएँ। इस बीमारी के लक्षण दिखते ही पत्ती-मोड़क विषाणु से संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें। ।